चोर- चोर मौसेरे भइया

चोर- चोर मौसेरे भइया

लोक गीत-✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

अंधिन के आगे जो रोबैं,बे अपने नैनन कौ खोबैं
चोर -चोर मौसेरे भइया,बे काहू के सगे न होबैं।
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कच्ची टूटै आज गाँव मै,ठर्रा केते पियैं लफंगा
पुलिस संग मैं उनके डोलै, उनसे कौन लेयगो पंगा
रोज नदी मै खनन होत है, रेता बजरी चोरी जाबै
रोकै कौन इसै अब बोलौ,रोकन बारो हिस्सा खाबै
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खुद फूलन कौ हड़प लेत हैं,औरन कौ बे काँटे बोबैं
चोर- चोर मौसेरे भइया,बे काहू के सगे न होबैं।
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सीधे- सादिन की जुरुआँअब,बनी गाँव की हैं भौजाई
पड़ैं दबंगन के चक्कर मै, हाय पुलिस ने मौज मनाई
करै पुलिस जब खेल हियन पै,बनै गरीबन पै बा भारी
ऐंठ दिखाबै लाचारिन पै,अपनी रखै बसूली जारी
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बाके करमन को फल बोलौ,भोले- भाले कौं लौं ढोबैं
चोर- चोर मौसेरे भइया,बे काहू के सगे न होबैं।
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बनो ग्राम सेवक के साथहि, ग्राम सचिव छोटो अधिकारी 
सेवा करनो भूलि  गए सब, बातैं करैं हियन पै न्यारी
अच्छे-अच्छिन कौ तड़पाबै, लेखपाल लागत है दइयर 
अपनी जेब भरत है एती,आँसू पीबत देखे बइयर
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नाय निभाबैं जिम्मेदारी, अफसर हाथ हियन पै धोबैं
चोर- चोर मौसेरे भइया,बे काहू के सगे न होबैं ।
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चलैं योजना एती सारी,होत गरीबन की है ख्वारी
बइयरबानी हाथ मलैं अब,मुँह से उनके निकलै गारी
मिलै न रासन उनकौ पूरो,कोटेदार चलाबै मरजी
स्कूलन को माल हड़प के, रौब दिखाबैं बैठे सरजी
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नेता जो सत्ता मैं आबैं, खूब चैन से बे तौ सोबैं
चोर -चोर मौसेरे भइया, बे काहू के सगे न होबैं।
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 रचनाकार- ✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
 बरेली (उ० प्र०)
 मोबा० नं०- 98379 44187

  ( लोकप्रिय समाचार पत्र दैनिक 'आज' में प्रकाशित रचना)

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4 Comments

Varsha_Upadhyay

03-Jan-2023 07:27 PM

बेहतरीन

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Gunjan Kamal

03-Jan-2023 09:04 AM

बेहतरीन

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Abhinav ji

03-Jan-2023 07:36 AM

Very nice👍

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